दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
सुना है चाह का दावा तुम्हारा
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
हुआ है अहल-ए-मसाजिद पे काम अज़-बस तंग
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
न समझा गया अब्र क्या देख कर
न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका
बुताँ के इश्क़ ने बे-इख़्तियार कर डाला