Friendship Poetry of Mirza Ghalib (page 3)

Friendship Poetry of Mirza Ghalib (page 3)
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ

घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग

गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा

गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए

दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ

चाहिए अच्छों को जितना चाहिए

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए

बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

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