ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे
दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के 'असद'