शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा
हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए