रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा