है ख़बर गर्म उन के आने की
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बे-दाद कि हम
जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे
तू और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है