की उस ने गर्म सीना-ए-अहल-ए-हवस में जा
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद'
वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
मिसाल ये मिरी कोशिश की है कि मुर्ग़-ए-असीर
है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में
वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब