हँस के कहता है मुसव्विर से वो ग़ारत-गर-ए-होश
जैसी सूरत है मिरी वैसी ही तस्वीर भी हो
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(878) Peoples Rate This
दुबकी हुई थी गुरबा-सिफ़त ख़्वाहिश-ए-गुनाह
नाला रुकता है तो सर-गर्म-ए-जफ़ा होता है
उन्हीं का नाम ले ले कर कोई फ़ुर्क़त में मरता है
बा'द तौबा के भी है दिल में ये हसरत बाक़ी
है यक़ीं वो न आएँगे फिर भी
देखा है मुझे अपनी ख़ुशामद में जो मसरूफ़
ये फ़क़त आप की इनायत है
लब पे कुछ बात आई जाती है
दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें
बहुत से मुद्दई' निकले मगर जाँ-बाज़ कम निकले
किस क़दर मो'तक़िद-ए-हुस्न-ए-मुकाफ़ात हूँ मैं