सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए
कुंज-ए-क़फ़स में मुझ को गिरफ़्तार देख कर
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Wasi Shah
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यही कहती लैली-ए-सोख़्ता-जाँ नहीं खाती अदब से ख़ुदा की क़सम
क्या दिन थे जब छुप छुप कर तुम पास हमारे आते थे
ऐ आफ़्ताब हादी-ए-कू-ए-निगार हो
मैं न समझा बुलबुल बे-बाल-ओ-पर ने क्या कहा
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
हरगिज़ न मिरे महरम-ए-हमराज़ हुए तुम
देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
मैं कहा बोलना शब ग़ैर से था तुम को क्या
या ख़फ़ा होते थे हम तो मिन्नतें करते थे आप
जवानी याद हम को अपनी फिर बे-इख़्तियार आई
न पाया वक़्त ऐ ज़ाहिद कोई मैं ने इबादत का
सहरा में 'हवस' ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की मदद से