इस बज़्म को जन्नत से जो ख़ुश पाते हैं
रिज़वाँ लिए गुल-दस्ता-ए-नूर आते हैं
क्या सहन है गुलशन-ए-अज़ा-ए-शब्बीर
पानी यहाँ ख़िज़्र आ के छिड़क जाते हैं
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(867) Peoples Rate This
आहों से अयाँ बर्क़-फ़िशानी हो जाए
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
दरगाह-ए-अलम-दार से बहबूदी है
हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा
है रज़्म सरापा तो ज़बाँ और ही है
ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर
आदा को उधर हराम का माल मिला
इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठ्ठा
हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए