इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
ये शीआ' हैं या आया-ए-नूर आए हैं
पढ़ मर्सिया ले दाद-ए-सुख़न उन से दबीर
क्या क्या हज़रात-ए-कानपूर आए हैं
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(975) Peoples Rate This
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
अदना से जो सर झुकाए आला वो है
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
है रज़्म सरापा तो ज़बाँ और ही है
आदा को उधर हराम का माल मिला
हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए
या शाह-ए-नजफ़ थाम लो इस किश्वर को
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
आहों से अयाँ बर्क़-फ़िशानी हो जाए
ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर