इस दर पे हर एक शादमाँ रहता है
ख़ंदाँ गुल-ए-उमीद यहाँ रहता है
हर फ़स्ल में दस्त-ए-इफ़्तिख़ार-उद-दौला
नैसाँ की तरह गुहर-फ़िशाँ रहता है
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इस बज़्म को जन्नत से जो ख़ुश पाते हैं
आहों से अयाँ बर्क़-फ़िशानी हो जाए
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
अदना से जो सर झुकाए आला वो है
परवाने को धुन शम्अ को लौ तेरी है
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर
फ़रमान-ए-अली लौह-ओ-क़लम तक पहुँचा
इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
आदा को उधर हराम का माल मिला