जो असासा ज़िंदगी का उस ने जोड़ा उम्र भर
मौत का सैलाब जब आया तो सब कुछ बह गया
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मसअले तो ज़िंदगी में रोज़ आते हैं मगर
राह-ए-हक़ में तुझे हस्ती को मिटाना होगा
मरते दम तक सब मुझ को इंसान कहें
ग़ुर्बत का अब मज़ाक़ उड़ाने लगे हैं लोग
हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
बुज़-दिली तो वो कर नहीं सकता
सब के होंटों पे वारदात के बअ'द
जुस्तुजू तेरी तरह ग़म तिरी क़ुर्बत क्या है
दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल
ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए
वो यक़ीनन वली सिफ़त होगा
अब हक़ीक़त लग रहा है मेरा अफ़्साना मुझे