धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
लो गले पड़े काँटे
क्यूँ गुलों की ख़्वाहिश की
जगमगा उठे तारे
बात थी नुमाइश की
इक पतिंगा उजरत थी
छिपकिली की जुम्बिश की
हम तवक़्क़ो' रखते हैं
और वो भी बख़्शिश की
लुत्फ़ आ गया 'अल्वी'
वाह ख़ूब कोशिश की
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हर-चंद जागते हैं प सोए हुए से हैं
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
जाते जाते देखना पत्थर में जाँ रख जाऊँगा
घर से बाहर किस बला का शोर था
मुतमइन है वो बना कर दुनिया
देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
मिला हमें बस एक ख़ुदा
रात पड़े घर जाना है
घर की चिंता
ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी
नींद रातों की उड़ा देते हैं
बत्ती बुझा के हीरो हीरोइन लिपट गए