मेरी इक नज़्म जो जन्मी है अभी
ज़ेहन की कोख से रोते रोते
जिस को काग़ज़ पे सुलाया है बड़ी मुश्किल से
हाँ
वही नज़्म मिरी
प्यारी सी भोली-भाली
आओ
आ कर उसे अच्छा सा कोई नाम तो दो
ताकि दुनिया में उसे भी कोई पहचान मिले
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मैं उसे रोक न पाया
गुज़ारिश
जिस्म में ख़ूँ की रवानी का मज़ा आएगा
इलाही रहम कर मुझ पर
रिश्ता
वस्ल
धुन
मेरी इक नज़्म
हमारे दिल में यादों को सलीक़े से रखा जाए
ख़ामोशी
मोहब्बत फिर से करते हैं
वक़्त