एक हंगामा शब-ओ-रोज़ बपा रहता है
ख़ाना-ए-दिल में निहाँ जैसे ख़ुदा रहता है
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(600) Peoples Rate This
अपने अंदर के अंधेरे को जलाया मैं ने
आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा
दिल ये कहता है हार कर देखें
सुलगती धूप में जल कर फ़क़ीर-ए-शब तिरी ख़ाक
फ़सील-ए-शहर से क्यूँ सब के सब निकल आए
ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
ज़िंदगी हम तिरे कूचे में चले आए तो हैं
आज कुछ सूरत-ए-अफ़्लाक जुदा लगती है
हम ज़ब्त की तारीख़ के हैं बाब 'रशीदी'
वो चाहते हैं कि हर बात मान ली जाए
मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ में बैठ गई