हज़ारों मय-कदे सर पर लिए हैं
ये बादल हैं बड़े सामान वाले
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मेरी दुश्वारी है दुश्वारी मिरी
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
यूँ ये बदली काली काली जाएगी
उस गली में हज़ार ग़म टूटा
ये तसर्रुफ़ है 'मुबारक' दाग़ का
ईमान की तो ये है कि ईमान अब कहाँ
दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
जो लड़खड़ाए क़दम मय-कदे में मस्तों के
मोहब्बत में ठनी अक्सर यहाँ तक
मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी