काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू
काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू
क्या करूँ वो भी मुस्तजाब नहीं
अब तो उस चश्म-ए-तर का चर्चा है
ज़िक्र-ए-दरिया नहीं सहाब नहीं
जम्अ' तूफ़ान-ओ-चश्म-ए-तर मसरफ़
अब मसारिफ़ का कुछ हिसाब नहीं
धो दिया सब को दीदा-ए-तर ने
वो नहीं दर्स वो किताब नहीं
इश्क़-बाज़ी का मुँह चिड़ाना है
और वो मौसम नहीं शबाब नहीं
तेरी आँखों के दौर में क्या क्या
सेहर रुस्वा नहीं ख़राब नहीं
मुख़्तसर हाल-ए-चश्म-ओ-दिल ये है
उस को आराम उस को ख़्वाब नहीं
जो सरापा-ए-यार 'आज़ुर्दा'
तेरे दीवाँ का इंतिख़ाब नहीं
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