ऐ दिल तमाम नफ़अ है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
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फ़लक ने भी सीखे हैं तेरे ही तौर
काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू
नालों से मेरे कब तह-ओ-बाला जहाँ नहीं
इस दर्द-ए-जुदाई से कहीं जान निकल जाए
मैं और ज़ौक़-ए-बादा-कशी ले गईं मुझे
नासेह यहाँ ये फ़िक्र है सीना भी चाक हो
क्या जानो जो असर है दम-ए-शो'ला-ताब में
इक बात पर बिगड़े गए न जो उम्र-भर मिले
निकलना हो दिल से दुश्वार क्यूँ
ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में
अगर हम न थे ग़म उठाने के क़ाबिल