किसी की शरबती नज़र
कोई महकता पैरहन
दमकती सुर्ख़ चूड़ियाँ
चमकता रेशमी बदन
कई झुके झुके शजर
हरे बनों में घूमती
कोई उदास रहगुज़र
हिना के रंग में बसे
किसी नगर के बाम-ओ-दर
रहेंगे याद उम्र-भर
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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था 'मुनीर' आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत
दूरी
बेबसी
दिल का सफ़र बस एक ही मंज़िल पे बस नहीं
सपेरा
फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
हर्फ़ सादा-ओ-रंगीं
अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
इक और घर भी था मिरा
डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में
है 'मुनीर' हैरत-ए-मुस्तक़िल