उस को भी तो जा कर देखो उस का हाल भी मुझ सा है
चुप चुप रह कर दुख सहने से तो इंसाँ मर जाता है
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(541) Peoples Rate This
मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
हँसी छुपा भी गया और नज़र मिला भी गया
अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल
सदा ब-सहरा
ख़्वाब-ओ-ख़याल-ए-गुल से किधर जाए आदमी
क्यूँ 'मुनीर' अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
दूरी
रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर
जादूगर
थकन से राह में चलना मुहाल भी है मुझे
मिरे पास ऐसा तिलिस्म है जो कई ज़मानों का इस्म है