मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
शहर के लोग खड़े हैं ब-सर-ए-बाम तमाम
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'मुसहफ़ी' गरचे ये सब कहते हैं हम से बेहतर
कुछ अपनी जो हुर्मत तुझे मंज़ूर हो ऐ शैख़
अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम
सल्तनत और ही माने रखती है
सैल-ए-गिर्या का मैं ममनूँ हूँ कि जिस की दौलत
अक्स से अपने अगर राह नहीं तुम को तो जान
हम भी हैं तिरे हुस्न के हैरान इधर देख
क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत
कर के सदक़े रख दिया दिल यूँ मैं उस की राह में
लिए आदम ने अपने बेटे पाँच
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम