अंदाज़-ए-ग़ज़ल आप का क्या ख़ूब है 'रज़्मी'
महसूस ये होता है क़लम तोड़ दिया है
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हुजूम-ए-ग़म में किस ज़िंदा-दिली से
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगा
मुझ को हालात में उलझा हुआ रहने दे यूँही
अभी ख़ामोश हैं शोलों का अंदाज़ा नहीं होता
कोई सौग़ात-ए-वफ़ा दे के चला जाऊँगा
इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
मेरे दामन में अगर कुछ न रहेगा बाक़ी
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
मेरे माहौल में हर सम्त बुरे लोग नहीं
शाम-ए-ग़म है तिरी यादों को सजा रक्खा है
मुक़ाबले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं