तेरे नौ-ख़ेज़ आवेज़े
ये दिल-आवेज़ आवेज़े
ज़रा सा तुम जो रुकती हो
पलट कर मुस्कुराती हो
तेरे गालों को छूते हैं
शरारत ख़ेज़ आवेज़े
तुझे पाने की ख़्वाहिश को
करें महमेज़ आवेज़े
सितम-अंगेज़ आवेज़े
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तेरी आँखों के दो सितारे थे
ग़ैर के घर सही वो आया तो
इश्क़ तू भी ज़रा टिका ले कमर
इश्क़ वो चार सू सफ़र है जहाँ
फ़ैसला हो गया है रात गए
ख़्वाहिश
शुऊर-ए-ज़ात के साँचे में ढलना चाहता हूँ
सामने अपने तू बुला के तो देख
मंज़िल है तो इक रस्ता-ए-दुश्वार में गुम है
माँ
जफ़ा-ए-अहद का इल्ज़ाम उलट भी सकता हूँ
मोहब्बत जीत सकती थी