आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
पास वहशत नहीं घर दूर है दीवाने का
ज़हर वाइज़ के लिए नाम है पैमाने का
ये भी क्या मर्द-ए-ख़ुदा चोर है मय-ख़ाने का
कभी फ़ुर्सत हो मुसीबत से तो उठ कर देखूँ
कौन से गोशे में आराम है काशाने का
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
रास्ता भूल के बैठा हूँ सनम-ख़ाने का
दिल की जाैलाँ-गह-ए-वहशत है अबद से मौसूम
नाम अज़ल है मिरे भूले हुए अफ़्साने का
दिल जो अपना भी है 'नातिक़' तो ये अपना नहीं कुछ
है जो अपना भी तो होगा किसी बेगाने का
(300) Peoples Rate This