पहुँचाएगा नहीं तू ठिकाने लगाएगा
अब उस गली में ग़ैर को रहबर बनाएँगे
Javed Akhtar
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तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई
गुल शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
रिंद की काएनात क्या है ख़ाक
दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम
ढूँढ तो बुत भी यहीं मिल जाएँगे मर्द-ए-ख़ुदा