किस ने सोचा था कि ख़ुद से मिल कर
अपनी आवाज़ से डर जाना है
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फ़ोन पर बात हुई उस से तो अंदाज़ा हुआ
दर्द इस दर्जा मिले ज़ब्त में कामिल हुआ मैं
ये जो मुझ में अज़ाब है प्यारे
मिरे क़रीब कोई ख़्वाब कैसे आ पाता
अब पसर आए हैं रिश्तों पे कुहासे कितने
एक तस्वीर को हटाया बस
जिया हूँ उम्र भर मैं भी अकेला
अपना बादल तलाशने के लिए
बिना रोए गुज़रना उस गली से
यूँ ही गलियों में मुक़द्दर दर-ब-दर मेरा भी है
जो ये कहते थे कि मर जाना है