ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है

ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है

बेटे से समझौता करना पड़ता है

जब औलादें नालायक़ हो जाती हैं

अपने ऊपर ग़ुस्सा करना पड़ता है

सच्चाई को अपनाना आसान नहीं

दुनिया भर से झगड़ा करना पड़ता है

जब सारे के सारे ही बे-पर्दा हों

ऐसे में ख़ुद पर्दा करना पड़ता है

प्यासों की बस्ती में शो'ले भड़का कर

फिर पानी को महँगा करना पड़ता है

हँस कर अपने चेहरे की हर सिलवट पर

शीशे को शर्मिंदा करना पड़ता है

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In Hindi By Famous Poet Nawaz Deobandi. is written by Nawaz Deobandi. Complete Poem in Hindi by Nawaz Deobandi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.