है अब तो वो हमें उस सर्व-ए-सीम-बर की तलब

है अब तो वो हमें उस सर्व-ए-सीम-बर की तलब

कि ताइरान-ए-हवा से है बाल-ओ-पर की तलब

जो कहिए हुस्न को ख़्वाहिश नहीं ये क्या इम्काँ

उसे भी अहल-ए-नज़र से है इक नज़र की तलब

कमाल-ए-इश्क़ भी ख़ाली नहीं तमन्ना से

जो है इक आह तो उस को भी है असर की तलब

परी-रुख़ों को ग़रज़ क्या थी ज़ेब-ओ-ज़ीनत से

न होती गर उन्हें अपने नज़ारा-गर की तलब

तलब से किस को रिहाई है बहर-ए-हस्ती में

अगर सदफ़ है तो उस को भी है गुहर की तलब

चमन में बुलबुल-ओ-गुल भी हैं अपने मतलब के

इसे है गुल की तलब उस को मुश्त-ए-ज़र की तलब

जहाँ वो बाग़-ए-तमन्ना है जिस के बीच 'नज़ीर'

जो इक शजर है तो उस को भी है समर की तलब

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Akbarabadi. is written by Nazeer Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Nazeer Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.