इक दम की ज़िंदगी के लिए मत उठा मुझे
ऐ बे-ख़बर मैं नक़्श-ए-ज़मीं की निशस्त हूँ
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चितवन दुरुस्त सीन बजा बातें ठीक-ठीक
पाया मज़ा ये हम ने अपनी निगह लड़ी का
ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल
हुआ ख़ुर्शीद के देखे से दूना इज़्तिराब अपना
नहीं याँ बैठते जो एक दम तुम
जाँ भी ब-जाँ है हिज्र में और दिल फ़िगार भी
था इरादा तिरी फ़रियाद करें हाकिम से
जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब
हुस्न के नाज़ उठाने के सिवा
क्या कहीं दुनिया में हम इंसान या हैवान थे
ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़
हँसे रोए फिरे रुस्वा हुए जागे बंधे छूटे