नशा में सूझती है मुझे दूर दूर की
नद्दी वो सामने है शराब-ए-तुहूर की
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जुनूँ के वलवले जब घुट गए दिल में निहाँ हो कर
ये आह-ए-बे-असर क्या हो ये नख़्ल-ए-बे-समर क्या हो
दिल इस तरह हवा-ए-मोहब्बत में जल गया
पुर्सिश जो होगी तुझ से जल्लाद क्या करेगा
गोर-ए-ग़रीबाँ
सुब्हा है ज़ुन्नार क्यूँ कैसी कही
मिरी बातों में क्या मालूम कब सोए वो कब जागे
नुज़ूल-ए-वहइ
नज़र कहीं नहीं अब आते हज़रत-ए-नासेह
अपनी दुनिया तो बना ली थी रिया-कारों ने
कोई मय दे या न दे हम रिंद-ए-बे-पर्वा हैं आप
इस वास्ते अदम की मंज़िल को ढूँडते हैं