कितने आलम गुज़र गए मुझ पर
तुम को सोचा था एक लम्हे को
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संग-दिल
सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
चिंगारियों का रक़्स
फूलों की ज़द में आ के कहीं जान से न जाए
हवस
चाँद जैसा इश्क़
क़ैद कर लो मुझे ख़यालों में
ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को
यूँ तो मोहब्बतों में बड़ी क़ुर्बतें रहीं
गुड़िया
ख़ुदी का राज़
मैं जल गई हूँ धूप की किरनों से जा-ब-जा