सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
ख़ामुशी बोलती है तो भला क्या क्या नहीं कहती
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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Friends Poetry
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किसी को याद करने के नहीं मख़्सूस कुछ लम्हे
और फिर मोहब्बत में जी के मर के देखा है
हवस
कितने आलम गुज़र गए मुझ पर
संग-दिल
जब जब तुम को याद करें हम
गीली हिज्र की क़ब्रें
ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को
रिहाई
वजूद कर्ब से आगे
ज़िंदगी से मिले हुए हो तुम
हवा का रंग नहीं है मगर मिज़ाज तो है