ब-ज़ाहिर ख़ूबसूरत हैं
तकल्लुम का तरीक़ा भी बहुत उम्दा सा उन का
बदन पर डाल कर पोशाक महँगे दाम वाली वो
समझते हैं निगाहों की हवस भी ढाँप ली हम ने
मगर वो जानते कब हैं
हवस का जिस्म नंगा है
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चिंगारियों का रक़्स
ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को
महव-ए-रक़्स-ए-विसाल था क्या था
गीली हिज्र की क़ब्रें
मैं जल गई हूँ धूप की किरनों से जा-ब-जा
ख़ुद-फ़रेबी रहे तो अच्छा है
दिल की उदासियों का कोई सबब नहीं है
हवस
रिहाई
तुम को खोया था एक लग़्ज़िश में
संग-दिल
आधी मोहब्बत