ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को
मिरे वजूद में गहरी कई ख़राशें हैं
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गुड़िया
गुनाह
हलचल
दिल की उदासियों का कोई सबब नहीं है
हवस
वजूद कर्ब से आगे
आगही
सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
महव-ए-रक़्स-ए-विसाल था क्या था
मैं अपने आप को रोकूँ कहाँ तक
ज़िंदगी से मिले हुए हो तुम
किसी को याद करने के नहीं मख़्सूस कुछ लम्हे