मोहब्बत बरमला इज़हार है सच्चे तअ'ल्लुक़ का
अगर कोई कहे छुप कर
मुझे तुम से मोहब्बत है
भरोसा तुम नहीं करना
गुनाह के वास्ते ख़ल्वत ही तो दरकार होती है
Allama Iqbal
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ख़ुद-फ़रेबी रहे तो अच्छा है
सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
यौम-ए-मज़दूर
तुम को खोया था एक लग़्ज़िश में
ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को
चिंगारियों का रक़्स
हलचल
हवा का रंग नहीं है मगर मिज़ाज तो है
अपनी आँखें नहीं जलाऊंगी
सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
मैं जल गई हूँ धूप की किरनों से जा-ब-जा
ख़ुदी का राज़