सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
मैं ने तो बस कहा था कि धड़कन का शोर है
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सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
किसी को याद करने के नहीं मख़्सूस कुछ लम्हे
यौम-ए-मज़दूर
गीली हिज्र की क़ब्रें
फूलों की ज़द में आ के कहीं जान से न जाए
यूँ तो मोहब्बतों में बड़ी क़ुर्बतें रहीं
हवा का रंग नहीं है मगर मिज़ाज तो है
चाँद जैसा इश्क़
आगही
गुनाह