फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो
छोटी सी हँसी
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
पैदाइश
सुना है मैं ने
अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए
जो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता
हमारा 'मीर'-जी' से मुत्तफ़िक़ होना है ना-मुम्किन
मिरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है
खेल