Ghazals of Niyaz Husain Lakhwera
नाम | नियाज़ हुसैन लखवेरा |
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अंग्रेज़ी नाम | Niyaz Husain Lakhwera |
वो एक शख़्स कि जो आफ़्ताब जैसा है
तन-ए-नहीफ़ की ख़ातिर रिदा नहीं माँगी
शजर आराम-दह होने लगे हैं
रुक रुक के कभी मुड़ के तुझे देख रहा हूँ
रंग जज़्बात में भर जाने को जी चाहता है
क़िल्लत ख़ुलूस की है मोहब्बत का काल है
प्यार का अब्र खुल के बरसा है
मैं सत्ह-ए-शेर पे उभरा हूँ आफ़्ताब लिए
कोई बताए कि ये रंग-ए-दोस्ती क्या है
कोई आसेब है साया है कि जादूगर है
कर्ब की लज़्ज़तों को ढूँडेंगे
जिस के हुस्न की शोहरत मुझ पे बार गुज़री थी
हमारे नाम से उन को मोहब्बतें कैसी
इक वो भी दिन थे तुझ से मिरा राब्ता न था
एक तो तुझ से मिरी ज़ात को रुस्वाई मिली
बलाएँ लीजिए अब बारिशों की
अँधेरी शब है ज़रूरत नहीं बताने की
अगर किसी ने बदन का सुकून पाया है
अच्छे लफ़्ज़ों से नवाज़े या वो रुस्वाई करे
आइना प्यार का इक अक्स तिरा माँगे है