जब मिले दो दिल मुख़िल फिर कौन है
बैठ जाओ ख़ुद हया उठ जाएगी
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जब न जीते-जी मिरे काम आएगी
जुनूँ की चाक-ज़नी ने असर किया वाँ भी
चमन में दहर के आ कर मैं क्या निहाल हुआ
क़ुर्स-ए-ख़ुर को देख कर तस्कीं रख ऐ मेहमान-ए-सुब्ह
चला दुख़्तर-ए-रज़ को ले कर जो साक़ी
जो दिन को निकलो तो ख़ुर्शीद गिर्द-ए-सर घूमे
समझा है हक़ को अपने ही जानिब हर एक शख़्स
जब हो चुकी शराब तो मैं मस्त मर गया
दिल-ब-दिल आईना है दैर ओ हरम
सुब्ह-दम ग़ाएब हुए 'अंजुम' तो साबित हो गया