परवीन शाकिर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का परवीन शाकिर (page 6)
नाम | परवीन शाकिर |
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अंग्रेज़ी नाम | Parveen Shakir |
जन्म की तारीख | 1952 |
मौत की तिथि | 1994 |
जन्म स्थान | Karachi |
शब वही लेकिन सितारा और है
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई
रुकने का समय गुज़र गया है
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था
पूरा दुख और आधा चाँद
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
खुली आँखों में सपना झाँकता है
खुलेगी उस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
जला दिया शजर-ए-जाँ कि सब्ज़-बख़्त न था
जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी
जब साज़ की लय बदल गई थी