परवीन शाकिर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का परवीन शाकिर (page 7)
नाम | परवीन शाकिर |
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अंग्रेज़ी नाम | Parveen Shakir |
जन्म की तारीख | 1952 |
मौत की तिथि | 1994 |
जन्म स्थान | Karachi |
इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
हवा-ए-ताज़ा में फिर जिस्म ओ जाँ बसाने का
हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है
गूँगे लबों पे हर्फ़-ए-तमन्ना किया मुझे
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
इक हुनर था कमाल था क्या था
दुख नविश्ता है तो आँधी को लिखा आहिस्ता
दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
बहुत रोया वो हम को याद कर के
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
अश्क आँख में फिर अटक रहा है
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे