गर आप पहले रिश्ता-ए-उल्फ़त न तोड़ते
मर मिट के हम भी ख़ैर निभाते किसी तरह
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(347) Peoples Rate This
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
उसी दिन से मुझे दोनों की बर्बादी का ख़तरा था
जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं
मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच
जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़
मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
जाँ घुल चुकी है ग़म में इक तन है वो भी मोहमल
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
पहलू-ओ-पुश्त-ओ-सीना-ओ-रुख़्सार आइना