तिरे बग़ैर तेरे इंतिज़ार से थक कर
शब-ए-फ़िराक़ के मारों को नींद आई है
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मोहब्बत बाइस-ए-दीवानगी है और बस मैं हूँ
तू सरापा नूर है मैं तेरा अक्स-ए-ख़ास हूँ
अब तो रुस्वाइयाँ यक़ीनी हैं
मुन्हरिफ़ मुझ से इक ज़माना है
निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती बदल के दम लेंगे
आतिश-ए-सोज़-ए-मोहब्बत को बुझा सकता हूँ मैं
तमाम उम्र रहे मेरा मुंतज़िर तू भी
मोहब्बत की सहबा पिलाने चला हूँ
तिरी नज़र के इशारों को दिल-कशी बख़्शी
कह रही है सारी दुनिया तेरा दीवाना मुझे
तुझे भी चैन न आए क़रार को तरसे
ख़िज़ाँ की ज़द में ही अब तक तिरा गुलिस्ताँ था