तू सरापा नूर है मैं तेरा अक्स-ए-ख़ास हूँ
कह रहे हैं यूँ तिरा सब आईना-ख़ाना मुझे
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तिरे बग़ैर तेरे इंतिज़ार से थक कर
आलम-ए-इम्काँ में दुनिया की हवा थी मैं न था
ख़िज़ाँ की ज़द में ही अब तक तिरा गुलिस्ताँ था
निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती बदल के दम लेंगे
मुन्हरिफ़ मुझ से इक ज़माना है
अब तो रुस्वाइयाँ यक़ीनी हैं
मोहब्बत की सहबा पिलाने चला हूँ
तिरी नज़र के इशारों को दिल-कशी बख़्शी
नज़र-नवाज़ नज़ारों से बात करता हूँ
तमाम उम्र रहे मेरा मुंतज़िर तू भी
मोहब्बत बाइस-ए-दीवानगी है और बस मैं हूँ
तिरी नज़र के इशारों को नींद आई है