काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं
जा पहुँचना है किसी सूरत से अपने यार तक
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जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी
शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'
अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
रखता है अपने हुस्न पर वो दिल रुबा घमंड
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ