शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'
ये बादा-नोशी-ए-दुनिया है तुझ को नंग-ए-शराब
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फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत
मुझ को तो शराब से मस्ती है और
हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले
अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
नर्गिसी चश्म दिखा कर के वो वहशत-ज़दा यार
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़