मअनी न आएँ दर्क में ग़ैर-अज़-वजूद-ए-लफ़्ज़
आरे दलील-ए-राह-ए-हक़ीक़त मजाज़ है
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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Wasi Shah
Parveen Shakir
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Ahmad Faraz
Gulzar
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बे-शग़ल न ज़िंदगी बसर कर
'क़ाएम' जो कहें हैं फ़ारसी यार
गंदुमी रंग जो है दुनिया में
मैं कहा ख़ल्क़ तुम्हारी जो कमर कहती है
तर्क कर अपना भी कि इस राह में
शब किस से ये हम जुदा रहे हैं
हम हैं जिन्हों ने नाम-ए-चमन बू नहीं किया
निगाहों से निगाहें सामने होते ही जब लड़ियाँ
मैं न वो हूँ कि तनिक ग़ुस्से में टल जाऊँगा
नहीं बंद-ए-क़बा में तन हमारा
शामत है क्या कि शैख़ से कोई मिले कि वाँ
क़िस्सा-ए-बरहना-पाई को मिरे ऐ मजनूँ