कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाए
बहुत न ख़ुद को हवा में उछालिए साहिब
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नई दुनिया
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त
आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
शाम कठिन है रात कड़ी है
बैठे रहो कुछ देर अभी और मुक़ाबिल
बे-वफ़ाओं को वफ़ाओं का ख़ुदा हम ने कहा
मैं था किसी की याद थी जाम-ए-शराब था
पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर
क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई
दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं