मैं था किसी की याद थी जाम-ए-शराब था
ये वो नशिस्त थी जो सहर तक जमी रही
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शाम कठिन है रात कड़ी है
आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
तुम्हारी याद
दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं
नई दुनिया
महताब नहीं निकला सितारे नहीं निकले
क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई
बैठे रहो कुछ देर अभी और मुक़ाबिल
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
आ जाना
बे-वफ़ाओं को वफ़ाओं का ख़ुदा हम ने कहा
कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाए